मुग्ध से मुक्त हो !
कुछ दिन पहले हमारे संस्थान में शर्मीला टागोर जी का आगमन हुआ । वे फ़िल्म सर्टिफिकेशन की मीटिंग में आयी हुई थी। जैसे ही ये ख़बर हम को ,लगी वहां उनसे मिलने पहुंचे ।बाहर बैठ कर हम सब उनका इंतजार कर रहे थे । उसी दौरान मैं Yसोच रही थी की क्यों हम उनसे मिलने इतने उतावले ,इतने पागल क्यों!हुई जा रहे हैं । हम क्यों किसी के लिए इतनामुग्ध हो जाते हैं । हम जिसके मुग्ध होते हैं वास्तव में ये टू उनका पर्सनल इंटरेस्ट है ,हमारा उससे क्या लेना देना ?उन्हें यश भी मिल रहा है और दौलत भी । लेकिन हम फिर भी उनके पीछे भाग रहे हैं । हमारी गलती नही है हमारा माइएंद सेट हई ऐसा हो गया है । हर के पीछे भागने की बीमारी हो गए है । मेरे विचार से हमें एस तरह से मुग्ध होने से बचना चाहिए इससे मुक्त होना चाहिए ।एक पत्रकार होने के नाते हमारे लिए बड़ा- छोटा कोई मायने नही रखता .यही सोच कर हम सभी शर्मीला जी मिले बिना लौट गए ।