संदेश

मार्च, 2008 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मुग्ध से मुक्त हो !

कुछ दिन पहले हमारे संस्थान में शर्मीला टागोर जी का आगमन हुआ । वे फ़िल्म सर्टिफिकेशन की मीटिंग में आयी हुई थी। जैसे ही ये ख़बर हम को ,लगी वहां उनसे मिलने पहुंचे ।बाहर बैठ कर हम सब उनका इंतजार कर रहे थे । उसी दौरान मैं Yसोच रही थी की क्यों हम उनसे मिलने इतने उतावले ,इतने पागल क्यों!हुई जा रहे हैं । हम क्यों किसी के लिए इतनामुग्ध हो जाते हैं । हम जिसके मुग्ध होते हैं वास्तव में ये टू उनका पर्सनल इंटरेस्ट है ,हमारा उससे क्या लेना देना ?उन्हें यश भी मिल रहा है और दौलत भी । लेकिन हम फिर भी उनके पीछे भाग रहे हैं । हमारी गलती नही है हमारा माइएंद सेट हई ऐसा हो गया है । हर के पीछे भागने की बीमारी हो गए है । मेरे विचार से हमें एस तरह से मुग्ध होने से बचना चाहिए इससे मुक्त होना चाहिए ।एक पत्रकार होने के नाते हमारे लिए बड़ा- छोटा कोई मायने नही रखता .यही सोच कर हम सभी शर्मीला जी मिले बिना लौट गए ।

राष्ट्र की दुर्गति

राष्ट्रीय खेल हॉकी 8 ० साल के ओलम्पिक सफर में जब बीजिंग कौलिफई नही कर पाई तो उसके अस्तित्व पर कोहराम मच गया । कहीं तो उसे राष्ट्रीय खेल की दुर्गति कहा गया और कहीं इसे शर्मनाक कहा गया। गौर करके देखिये जहाँ राष्ट्रीय शब्द आया है उसकी स्थिति कितनी दुरुस्त है राष्ट्रीय पशु बाघ विलुप्त होते जा रहे हैं । राष्ट्रीय पक्षी मोर तो अब चिडिया घर में भी सीमित हैं । राष्ट्रीय गीत और गान पर पहले से ही शोर शराबा है । इनका आदर करना तो हम भूल ही गए है । राष्ट्रीय स्मारक की दुर्दशा सबके सामने है । कमल हमारा राष्ट्रीय फूल यह तो शायद सब भूल ही गए होंगे । राष्ट्र भाषा हिन्दी को बौलीवुड छोड़कर बाकि सभी ने तो दरकिनार ही कर दिया है । राष्ट्रीय नेता क्या अब राष्ट्रीय रहे, नही वे तो आजकल प्रांतीय के नक्शे कदम पर चल रहे हैं । जिन्हें हल्ला बोल ही करना तो इन सब पर करो । इसके लिए राष्ट्रीय खेल हॉकी ही क्यों ?