राष्ट्र की दुर्गति

राष्ट्रीय खेल हॉकी 8० साल के ओलम्पिक सफर में जब बीजिंग कौलिफई नही कर पाई तो उसके अस्तित्व पर कोहराम मच गया । कहीं तो उसे राष्ट्रीय खेल की दुर्गति कहा गया और कहीं इसे शर्मनाक कहा गया। गौर करके देखिये जहाँ राष्ट्रीय शब्द आया है उसकी स्थिति कितनी दुरुस्त है राष्ट्रीय पशु बाघ विलुप्त होते जा रहे हैं । राष्ट्रीय पक्षी मोर तो अब चिडिया घर में भी सीमित हैं । राष्ट्रीय गीत और गान पर पहले से ही शोर शराबा है । इनका आदर करना तो हम भूल ही गए है । राष्ट्रीय स्मारक की दुर्दशा सबके सामने है । कमल हमारा राष्ट्रीय फूल यह तो शायद सब भूल ही गए होंगे । राष्ट्र भाषा हिन्दी को बौलीवुड छोड़कर बाकि सभी ने तो दरकिनार ही कर दिया है । राष्ट्रीय नेता क्या अब राष्ट्रीय रहे, नही वे तो आजकल प्रांतीय के नक्शे कदम पर चल रहे हैं । जिन्हें हल्ला बोल ही करना तो इन सब पर करो । इसके लिए राष्ट्रीय खेल हॉकी ही क्यों ?

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