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नवंबर, 2008 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

ज्ञान और अनुभव को कैसे अलग....

ज्ञान और अनुभव को कैसे अलग किया जा सकता है। आप ने बड़े ही फुर्सत में लिखा है कि आपको ज्ञान बघारना नहीं आता है॥आखिर इस ज्ञान को कैसे परिभाषित किया जाए ॥जिसे हम ज्ञान कह कर उपेक्षित ठहरा रहे हैं दरअसल वह भी अनुभवों के आधार पर विकसित हुआ है। इसलिए जिस अनुभव को आप उपयोगी बता रही हैं वह किसी चीज को समझने की क्षमता यानी ज्ञान का पूर्ववर्ती स्वरूप है। किसी का अनुभव दूसरे के लिए ज्ञान बन जाता है। जैसे चाकू की धार को जांचते हुए उंगली काटने का अनुभव अगली पीढ़ी के लिए ज्ञान बन जाता है। जरूरी नहीं कि अगली पीढ़ी हाथ काटने के अनुभव से ही गुजरे।

क्या राहुल वाकई मर गया

राहुल की उम्र देश के युवाओं का प्रतिनिधित्व करती है। जिस तरह से हमने गड़बड़ियां पैदा की हैं...उसका नमूना है राहुल का राज ठाकरे से बात करने की जिद ...जबकि वह सिर्फ बात करना चाहता था ,फिर भी उसकी आवाज को दबा दिया गया। उससे पुलिस को इतना खतरा क्यों लगा। जबकि उसने न तो किसी को मारा और न ही उससे पास पिस्टल के अलावा कोई हथियार था। अगर उसका उद्देश्य मारना होता तो वह राज ठाकरे से बात करने की जिद क्यों करता । लेकिन भारतीय स्टेट पुलिस की एक और सक्रियता...एक और सफलता.....एक और एन्काउटर.....मारने वाले पुलिस इंस्पेक्टर के प्रोफाइल में एक और एनकाउन्टर की बढ़ोत्तरी.... जिस प्रक्रिया के तहत भारत में विकास को आगे बढाया जा रहा है,उसके आधार पर इसकी सम्भावना तेज हो जाती है कि सैकड़ों राहुल लोकबाग, अदालती कार्यवाहियों और शासकीय सुरक्षा पर विश्वास करने के बजाए खुद ही हथियार उठाने लगें। राजठाकरे को रोकने के लिए सीधे चुनौती देने वाला राहुल यह कतई साबित नहीं करता कि वह आज के हालात में अकेला विद्रोही है। फिलहाल पुलिस ने उसे मार दिया है, लेकिन उसकी मौत ने यह बताने में सफलता हासिल कर ली है,स्थितियों के और बदतर...