खेल के नाम पर खिलवाड़

राष्ट्रमंडल खेल पूरी दुनिया के लिए खेल महोत्सव है। मगर यह कम ही लोगों को मालूम हो कि इसने कितने लोगों के जीवन के साथ खिलवाड किया।यह खेल है....मगर किसी के सपनों के साथ खेल....तो किसी के भविष्य के साथ खेल .....और कितनों के अस्तित्व के साथ खिलवाड हो गया।
दिल्ली में हो रही इस राष्ट्रमंडल खेल में शूटिंग प्रतियिता का आयोजन गुडगाँव में किया जा रहा है.....इसके लिए गुडगाँव पुलिस ने सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए पूरे गुडगाँव में वेरीफिकेशन की प्रक्रिया अपनाई...जिसके तहत सभी को अपने निकटतम पुलिस स्टेशन में अपना कोई भी पहचान पत्र जमा करवाना था। भई अच्छी बात है....इसी बहाने सभी का वेरीफिकेशन भी हो रहा है। बात यदि इतने पर खत्म हो जाती तो फिर वह बात ही क्या जो राष्ट्रमंडल खेल से जुडे और विवादित न हो।
गुड़गाँव..जो विश्व पटल पर मिलेनियम सिटी..साइबर सिटी के नाम से जाना जाता है और यहाँ रह रहे प्रवासियों के लिए तो यह सपनो के शहर से कम नहीं।इस औद्योगिक नगरी में बहुत से प्रवासी मित्र काम की तलाश में आते है और अपने सपनों को पूरा करने की कोशिश करते है।ये सभी बिहार,उडीसा,उत्तरप्रदेश,पं.बंगाल से आए हैं। सभी का वेरीफिकेशन हुआ.....मध्यम वर्ग के वे लोग जो फैक्ट्रियों में काम करते हैं...एमएनसीज़ में काम करते हैं..उन्हें कोई परेशानी नहीं हुई....मगर पहाड टूटा उन प्रवासी मजदूरों पर जो रिक्शा चलाते हैं....घरों में काम करते हैं..कार की सफाई करते हैं....और कुछ वे जो कंपनियों में कॉनट्रैक्ट पर काम करते हैं।इन सबके पास भी पहचान पत्र इनका वोटर आईडी था मगर गुडगाँव पुलिस इनके पहचान पत्र के फाडकर इनसे वापस उनके गाँव जाने को कहती है इन्हें खेल के बाद आने को कहा गया है।
गुडगाँव के कई गाँव नाथुपुर,सिकंदरपुर,सरहोल में ऐसी घटनाएँ देखने को मिली....सुनने को मिली। जब मैं नाथुपुर पहुँची और इस बारे में जानने की कोशिश की तो वहाँ के स्थानीय निवासी ने साफतौर पर कह दिया...यहाँ ऐसा कुछ नहीं है..कुछ किराएदारों से भी बात हुई उन्होंने भी ऐसी कोई घटना से साफ इंकार कर दिया ।नाथुपुर में एक दो बस्ती है..जहाँ अधिकतर बंगाली प्रवासी रहते है...और वे रिक्शा चलाते है..कुछ गाडी की सफाई करते हैं।उन लोगों ने डरते डरते हमें बताना शुरु कर दिया...जिस दिन उन लोगों का वेरीफिकेशन हुआ उस दिन पुलिस ने उन्हें 7-8 घंटे थाने में रखा और पूरे थाने की सफाई करवाई।रात को पुलिस उन्हें पीटती भी थी और उनके पहचान पत्र को फाड भी देती थी.....और बंगाल वापस जाने की धमकी देती थी।जिनके पास कोई भी पहचान पत्र नहीं वे तो गुडगाँव छोड जा चुके है। और जिनके पास है वे भी डर के मारे अब जाने की तैयारी कर रहे हैं......
सरहोल गाँव की बात की जाए तो आधी आबादी वहाँ से जा चुकी है।यहाँ अधिकतर प्रवासी किसी कंपनी में कार्यरत हैं और सब्ज़ी व फल बेचने का काम करते हैं। सभी यूपी एवं बिहार के हैं।इनके पास समस्या ये है कि इनके फल और सब्जी का क्या होगा.. .क्योंकि वही एक कमाई का ज़रिया है।गाँव पर कोई कमाने का साधन नहीं।कैसे वे एक महीने अपने परिवार की परवरिश करेंगे।
ये है अपने महान लोकतंत्र की तस्वीर जहाँ लोग अपने ही देश में दहशत की ज़िंदगी जी रहे हैं। जहाँ राजधानी में इतने बडे खेल का आयोजन हो रहा है,वहीं दिल्ली के एन सी आर क्षेत्र में खेल के नाम पर सुरक्षा के नाम पर कितनों के साथ खिलवाड किया जा रहा है। खेल की इतनी बडी कीमत चुकानी पड़ेगी इन प्रवासी मित्रों ने सोचा भी न होगा।

टिप्पणियाँ

Vijay Pratap ने कहा…
sahi kaha gulami ke gande khel band hi hone chahie....aap lagatar likhti rahe. shubhkamnae!

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