आवाज बंद


कोई भी ताकतवर अपनी ताकत  का प्रदर्शन कमज़ोर पर ही आजमा कर करता है ... कमज़ोर अपनी बात कह न सके इसके लिए सबसे पहले उसकी जुबां छिनी जाती है.... और यही आवाज़ छीनने की कोशिश की जा रही  उन समुदाय से जिनके लिए आज सामुदायिक रेडियो ही सब कुछ है.. मनोरंजन से लेकर हर बात की जानकरी उन्हें अपने रेडियो के ज़रिये मिलती है, उनकी आवाज़ है सामुदायिक रेडियो... दूर संचार विभाग द्वारा रेडियो से एक सालाना स्पेक्ट्रंम फीस ली जाती है, ताकि रेडियो स्टेशन को एक फ्रीक्वंसी दी जा सके, हर रेडियो स्टेशन का प्रसारण इस फ्रीक्वंसी पर होता है ,जिस पर तरंग ध्वनियों  को आकाश में छोड़ा जाता है. जिसे स्पेक्ट्रंम  कहते हैं और सरकार इस पर शुल्क लेती है इसी शुल्क को एक गुना नहीं बल्कि पांच गुना ज्यादा करने जा रही है... पहले जहाँ ये सालाना 19,700 था वहीँ ये 91,००० हो गया है.. जो की सामुदायिक रेडियो के बूते से सामर्थ्य से बहार की चीज़ें हैं....
  सूचना प्रसारण मंत्रालय विभाग और दूर संचार विभाग the Ministry of Information and Broadcasting (MoIB) along with Ministry of Information and Communication Technology (MoCIT) ने भारतीय संविधान के तहत , किसी को भी अपनी बात कहने बोलने और अभिव्यक्त करने की आज़ादी है, यह नागरिकों का मौलिक  अधिकार है..इस बात को समझा और २००६ भारत में सामुदायिक रेडियो का आगाज़ हुआ केंद्र सरकार ने भी  सुप्रीम कोर्ट के १९९५ के महत्वपूर्ण फैसला को  संज्ञान लिया गया, जिसमें साफ़ तौर पे कहा गया - बोलने और अभिवक्त करने की आज़ादी के तहत हमें सूचन का अधिकार भी प्राप्त है ,और इसे फैलाया जाये साथ ही ये भी कहा गया वायु-तरंग  सार्वजानिक संपत्ति है और इसका फायदा जनहित में होना चाहिए
और आज जब इसके तहत पूरे भारत  में 130 सामुदायिक रेडियो खुले हैं , जिनका दायरा सिर्फ  10-12 किलोमीटर और 50 वाट ट्रांस्मित्टर के तहत सीमित है.. जो ग्रामीण ,पिछड़े इलाको , पहाड़ों में, वंचित समुदाय द्वारा और उनके लिए खोले गए चलाये जा रहे हैं..... अब उन्हें यह स्पेक्ट्रम शुल्क सालाना लगभग ( ९१,०००) एक लाख भरना पड़ेगा

भारत सरकार जहाँ सामुदायिक मीडिया को प्रोत्साहन देने की बात कर रही है.... हर साल नए सामुदायिक रेडियो खोलने की घोषणा की जा रही है, ऐसे में एस तरह कनीतियां अपना कर,बड़े  शुल्क लगा कर, सामुदायिक मीडिया को ख़त्म करने की एक एक अच्छी खासी योजना है.... ताकि समुदाय को कहने का कोई मंच न मिले किसी बेजुबान को आवाज़ न मिले , इस  तरह से स्पेक्ट्रम शुल्क बढ़ने से ज़मीन ्तर पे काम करने वाले लोग बहार हो जायेंगे और ये सामुदायिक रेडियो का लाइसेंस बड़े बड़े विश्वव्द्यालय , बड़ी बड़ी कम्पनियां और अमीर गैर सरकारी संगठन के हाथों चली जाएगी
सामुदायिक रेडियो फोरम  इस बात के लिए आवाज़ उठा रह है और सरकार की एस  नीति की भी निंदा करता हैसामुदायिक रेडियो फोरम एक वैधानिक पंजीकृत संस्था है जो सामुदायिक रेडियो की वकालत करता है , और उन लोगों को दिशा भी दिखता जो सामुदायिक रेडियो खोलना चाहते हैं ,साथ ही यह सूचना प्रसारण मंत्रालय के सामुदायिक रेडियो के स्क्रीनिंग समिति का सदस्य भी है , और भारत में अधिक से अधिक सामुदायिक रेडियो खुले, इसके लिए मुहीम छे रखी है और यह प्रयास २००७ से यह कर रहा है
समुदाई रेडियो  फोरम के साथ साथ अलग-अलग सामुदायिक रेडियो भी शुल्क बढ़ने के फैसले को लेकर आक्रोश में हैं  ...और आज अधिकतर सामुदायिक रेडियो ने अपना प्रसारण बंद रखा ... रेडियो स्टेशन की टीम से ज्यादा समुदाय में गुस्सा  है क्यूंकि उनसे उनका रेडियो नहीं बल्कि आवाज छीन ली जायेगी, क्यूंकि अधिकतर रेडियो इतनी बड़ी राशि जमा नहीं कर सकते , इसलिए बहुत से समुदाय ने अपने गाँव में हस्ताक्षर अभियान चला रहे हैं ....वक़्त की आवाज़ सामुदायिक रेडियो , अल्फाज-ए- मेवात , हेवानी ,गुडगाँव की आवाज़ सामुदायिक रेडियो और अन्य भी इसमें शामिल हैं....

समुदाय तब तक लड़ेगी जब तक उन्हें अपनी आवाज़ वापस नहीं मिलती .. कुछ श्रोताओं ने गुडगाँव की आवाज़ सामुदायिक रेडियो फ़ोन करके ये भी कहा की, आप १९,७०० ये राशि भी न दो ... सरकार पहले दूर संचार विभा घोटालों को ठीक करे... बल्कि उससे होने वाली कमी को सामुदायिक रेडियो पे न थोपे .... एक भी पैसा न दो ... जो होगा हम सब मिलकर सामना करेंगे ..पूरा गुडगाँव साथ है .....” ये है सामुदायिक रेडियो की आवाज़....!!!

Soumya Jha
Station Manager
Gurgaon Ki Awaz, community radio

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