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किसान वाणी बने जनवाणी सामुदायिक रेडियो

प्रंदह साल से चल रहा सामाजिक संगठनों का यह आंदोलन, राष्ट्रीय स्तर पर हुए कई सम्मेलन , जागरुकता कार्यशाला, नीतियों के दस साल,फोरम और एसोसिएशन के जद्दोजहद के बाद अब यह लगने लगा है, सामुदायिक रेडियो ने सिर्फ सोसाइटी सेक्टरों में ही नहीं अपनी पहचान बनाई है बल्कि सरकारी महकमे में भी बडी तेजी से दस्तक देना शुरु कर दिया है। प्रधानमंत्री ने हाल में भारतीय कषि अनुसंधान केंद्र के स्थापना दिवस पर सामुदायिक रेडियो की महत्ता को समझते हुए इसे किसानों की जरुरत को समझा है। वैज्ञानिक इस रेडियो का  इस्तेमाल प्रभावी तरीके से करें तो किसानों को अपनी ही भाषा में कई महत्वपूर्ण जानकारियाँ मिल जाएँगी। किसान सबसे अधिक रेडियो सुनते हैं, इसलिए कृषि विश्वविद्यालय और कॉलेजों में सबसे अधिक रेडियो खुलने चाहिए। जमीनी स्तर पर सामुदायिक रेडियो अपना काम बखूबी करता है।यह बात अब सबके समझ में आने लगी है।   भारत में 170 सामुदायिक रेडियो स्टेशनों में सिर्फ 12 रेडियो स्टेशन कृषि विज्ञान केंद्रों के हैं या फिर कृषि संस्थानों के( CRFC के वेबसाइट से साभार )। यह संख्या वाकई बहुत कम है और ये शायद इसलिए हो रहा है क्य...

फिर वो रात कब आएगी.........

कहते हैं , सूरज और चाँद पर सबका हक़ है। अपने हिस्से की रौशनी और रात की चांदनी सबको मिलती है।दिन का हर पहर सबके लिए है ,   ज़रा दिल पर हाथ रख कर कहिये क्या ये सच है.... सभी माओं बेटियों और बहनों से ये मेरा सवाल है। दिन के सूरज को तो हम सब देख सकते हैं, महसूस कर सकते हैं, उसकी रौशनी में डूब सकते हैं लेकिन रात और उसकी चांदनी, उसकी ठंडक को आगोश में नहीं ले सकते हैं, क्यूंकि रात को हमसे छीना गया है ,   रात तो हमारे लिए है ही नहीं। जिस चाँद को लेकर नारी के लिए कवि और लेखक ने इतनी रचनाएँ की है उसी चाँद से उस स्त्री को महरूम कर दिया गया है , इसे विडंबना नहीं तो और क्या कहेंगे। आज महिलाएँ अलग-अलग क्षेत्रों में काम कर रही हैं ऊँचे पदों पर आसीन है , आत्म निर्भर हैं गजब का आत्मविश्वास भरा है , आँखों में ऐसी चमक है मानों पूरे जग जीतने का जज़बा हो लेकिन जैसे जैसे दिन सिकुडता है और रातें बाहें पसारने लगती है, ये आत्म विश्वास पुरुष के विश्वास से जुड़ने लगता है, ये आत्म निर्भरता पुरुष पर निर्भरता बन जाती है। माँ हर बार कहती है   बेटी घर जल्दी आ जाना। शाम मत होने देना। बेटी ने इस ब...