किसान वाणी बने जनवाणी सामुदायिक रेडियो
प्रंदह साल से चल रहा सामाजिक
संगठनों का यह आंदोलन, राष्ट्रीय स्तर पर हुए कई सम्मेलन, जागरुकता कार्यशाला, नीतियों
के दस साल,फोरम और एसोसिएशन के जद्दोजहद के बाद अब यह लगने लगा है, सामुदायिक
रेडियो ने सिर्फ सोसाइटी सेक्टरों में ही नहीं अपनी पहचान बनाई है बल्कि सरकारी
महकमे में भी बडी तेजी से दस्तक देना शुरु कर दिया है। प्रधानमंत्री ने हाल में
भारतीय कषि अनुसंधान केंद्र के स्थापना दिवस पर सामुदायिक रेडियो की महत्ता को
समझते हुए इसे किसानों की जरुरत को समझा है। वैज्ञानिक इस रेडियो का इस्तेमाल प्रभावी तरीके से करें तो किसानों को
अपनी ही भाषा में कई महत्वपूर्ण जानकारियाँ मिल जाएँगी। किसान सबसे अधिक रेडियो
सुनते हैं, इसलिए कृषि विश्वविद्यालय और कॉलेजों में सबसे अधिक रेडियो खुलने
चाहिए। जमीनी स्तर पर सामुदायिक रेडियो अपना काम बखूबी करता है।यह बात अब सबके समझ
में आने लगी है।
भारत में 170 सामुदायिक
रेडियो स्टेशनों में सिर्फ 12 रेडियो स्टेशन कृषि विज्ञान केंद्रों के हैं या फिर
कृषि संस्थानों के(CRFC के वेबसाइट से साभार )। यह संख्या वाकई बहुत कम है और ये
शायद इसलिए हो रहा है क्योंकि सामुदायिक रेडियो स्टेशन खोलने की घोषणा जितनी तेजी
से की जाती है, लाइसेंस देने की प्रक्रिया उतनी ही धीमी गति से है। लाइसेंस देने
में भारत सूचना प्रसारण मंत्रालय के अलावा अन्य मंत्रालय की खिडकी से भी होकर
गुजरना होता है। डब्लू.पी.सी. – संचार और सूचना तकनीकी मंत्रालय की शाखा जो
फ्रीक्वेंसी एलोकेट करती है। अब समस्या यह है कि जब फ्रीक्वेंसी ही नहीं मिल रही
तो क्या फायदा ऐसी घोषणाओं का। तब बॉडकास्ट के बदले नैरोकास्ट से ही शायद संतोष
करना पडेगा। वजह जो भी हो फ्रीक्वेंसी जल्दी न देने की, लेकिन इरादे तो सबके यही
है, अधिक से अधिक सामुदायिक रेडियो खुले। साथ ही कृषि संस्थानों के लिए खोले गए इन
सामुदायिक रेडियों को इस प्रकार का प्रशिक्षण मिले कि वह अच्छे कार्यक्रम प्रस्तुत
कर सके और किसान वाणी के साथ-साथ जनवाणी भी बन सके।
सबने इस बात को मान भी लिया
है किसी जगह का किसी समुदाय का समुचित विकास करना है या फिर किसी जगह की भाषा को
बचाना है तो सामुदायिक रेडियो से बेहतर कोई विक्लप नहीं। सभी के हौंसले फिर से
मजबूत हुए हैं क्योंकि फिर से घोषणा हुई है। इस उम्मीद को बनाए रखने के लिए कृषि कॉलेजों में और अधिक से अधिक सामुदायिक
रेडियो खुले इसके लिए सूचना प्रसारण मंत्रालय , कृषि मंत्रालय और सूचना तकनीकी
मंत्रालय सभी को मिलकर आगे आना होगा और बाकी मंत्रालय को भी इस पर विचार करना होगा
कि किस तरीके सामुदायिक रेडियो का समुदाय के हित में अधिक से अधिक इस्तेमाल किया
जा सके।
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