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कहानी : कश्मकश

“ये आवाज़ क्यों ठीक से नहीं आ रही, शायद हेड फोन ठीक से नहीं लगा....” हैडफ़ोन को उसने कान से उठाकर फिर से लगाया “मगर ये तो ठीक है...यहां कुछ ठीक से काम नहीं करता, सारा काम मैं ही देखूं ...मैं न रहूँ ,तो पता नहीं क्या होगा ..”वो अपने आप से बातें किये जा रही थी, उसे चिढ सी मच रही थी ... “मैं न रहूँ....लेकिन मैं जा कहाँ रही हूँ ...मुझे नहीं कहीं जाना...ज़बरदस्ती थोड़े ही है, मैं तो सोच भी नहीं सकती.....और ये...ये तार तो मैं ही सदर से खरीद कर लायी थी,कितनी रात हो गयी थी, उस दिन ....उन तारों को प्यार से धीरे धीरे पोंछते हुए लपेट रही थी और अपने अतीत को उन लिपटे तारों से अलग कर रही थी .....अलग नहीं कर रही थी , अलग करने की कोशिश कर रही थी... फिर वो चह्कते हुए माइक के नीचे पड़े नीले से टेबल क्लॉथ पर बने रंग बिरंग फूल पर उँगलियों घुमाने लगी, उसे शायद वो महसूस कर रही थी   “ ये ,ये टेबल क्लॉथ .... बुधनी काकी के चार पांच दिन आगे पीछे घूमे.. उनका बैंक का काम कर दिए ,तब जाकर वो कढाई कर दी थी, यहाँ रेडियो में लगाने के लिए ......इतना कहते ही उसकी   आँखों से दो मोटे मोटे बूँदें उस फूल को ग...

किसान वाणी बने जनवाणी सामुदायिक रेडियो

प्रंदह साल से चल रहा सामाजिक संगठनों का यह आंदोलन, राष्ट्रीय स्तर पर हुए कई सम्मेलन , जागरुकता कार्यशाला, नीतियों के दस साल,फोरम और एसोसिएशन के जद्दोजहद के बाद अब यह लगने लगा है, सामुदायिक रेडियो ने सिर्फ सोसाइटी सेक्टरों में ही नहीं अपनी पहचान बनाई है बल्कि सरकारी महकमे में भी बडी तेजी से दस्तक देना शुरु कर दिया है। प्रधानमंत्री ने हाल में भारतीय कषि अनुसंधान केंद्र के स्थापना दिवस पर सामुदायिक रेडियो की महत्ता को समझते हुए इसे किसानों की जरुरत को समझा है। वैज्ञानिक इस रेडियो का  इस्तेमाल प्रभावी तरीके से करें तो किसानों को अपनी ही भाषा में कई महत्वपूर्ण जानकारियाँ मिल जाएँगी। किसान सबसे अधिक रेडियो सुनते हैं, इसलिए कृषि विश्वविद्यालय और कॉलेजों में सबसे अधिक रेडियो खुलने चाहिए। जमीनी स्तर पर सामुदायिक रेडियो अपना काम बखूबी करता है।यह बात अब सबके समझ में आने लगी है।   भारत में 170 सामुदायिक रेडियो स्टेशनों में सिर्फ 12 रेडियो स्टेशन कृषि विज्ञान केंद्रों के हैं या फिर कृषि संस्थानों के( CRFC के वेबसाइट से साभार )। यह संख्या वाकई बहुत कम है और ये शायद इसलिए हो रहा है क्य...

फिर वो रात कब आएगी.........

कहते हैं , सूरज और चाँद पर सबका हक़ है। अपने हिस्से की रौशनी और रात की चांदनी सबको मिलती है।दिन का हर पहर सबके लिए है ,   ज़रा दिल पर हाथ रख कर कहिये क्या ये सच है.... सभी माओं बेटियों और बहनों से ये मेरा सवाल है। दिन के सूरज को तो हम सब देख सकते हैं, महसूस कर सकते हैं, उसकी रौशनी में डूब सकते हैं लेकिन रात और उसकी चांदनी, उसकी ठंडक को आगोश में नहीं ले सकते हैं, क्यूंकि रात को हमसे छीना गया है ,   रात तो हमारे लिए है ही नहीं। जिस चाँद को लेकर नारी के लिए कवि और लेखक ने इतनी रचनाएँ की है उसी चाँद से उस स्त्री को महरूम कर दिया गया है , इसे विडंबना नहीं तो और क्या कहेंगे। आज महिलाएँ अलग-अलग क्षेत्रों में काम कर रही हैं ऊँचे पदों पर आसीन है , आत्म निर्भर हैं गजब का आत्मविश्वास भरा है , आँखों में ऐसी चमक है मानों पूरे जग जीतने का जज़बा हो लेकिन जैसे जैसे दिन सिकुडता है और रातें बाहें पसारने लगती है, ये आत्म विश्वास पुरुष के विश्वास से जुड़ने लगता है, ये आत्म निर्भरता पुरुष पर निर्भरता बन जाती है। माँ हर बार कहती है   बेटी घर जल्दी आ जाना। शाम मत होने देना। बेटी ने इस ब...

आवाज बंद

कोई भी ताकतवर अपनी ताकत   का प्रदर्शन कमज़ोर पर ही आजमा कर करता है ... कमज़ोर अपनी बात कह न सके इसके लिए सबसे पहले उसकी जुबां छिनी जाती है.... और यही आवाज़ छीनने की कोशिश की जा रही   उन समुदाय से जिनके लिए आज सामुदायिक रेडियो ही सब कुछ है.. मनोरंजन से लेकर हर बात की जानक ा री उन्हें अपने रेडियो के ज़रिये मिलती है , उनकी आवाज़ है सामुदायिक रेडियो... दूर संचार विभाग द्वारा रेडियो से एक सालाना स्पेक्ट्रंम फीस ली जाती है , ताकि रेडियो स्टेशन को एक फ्रीक्वंसी दी जा सके , हर रेडियो स्टेशन का प्रसारण इस फ्रीक्वंसी पर होता है , जिस पर तरंग ध्वनियों   को आकाश में छोड़ा जाता है. जिसे स्पेक्ट्रंम   कहते हैं और सरकार इस पर शुल्क लेती है ।   इसी शुल्क को एक गुना नहीं बल्कि पांच गुना ज्यादा करने जा रही है... पहले जहाँ ये सालाना 19,700 था वहीँ ये 91 , ००० हो गया है.. जो की सामुदायिक रेडियो के बूते से सामर्थ्य से ब ा हार की चीज़ें हैं....   सूचना प्रसारण मंत्रालय विभाग और दूर संचार विभाग the Ministry of Information and Broadcasting (MoIB) along with Min...

खेल के नाम पर खिलवाड़

राष्ट्रमंडल खेल पूरी दुनिया के लिए खेल महोत्सव है। मगर यह कम ही लोगों को मालूम हो कि इसने कितने लोगों के जीवन के साथ खिलवाड किया।यह खेल है....मगर किसी के सपनों के साथ खेल....तो किसी के भविष्य के साथ खेल .....और कितनों के अस्तित्व के साथ खिलवाड हो गया। दिल्ली में हो रही इस राष्ट्रमंडल खेल में शूटिंग प्रतियिता का आयोजन गुडगाँव में किया जा रहा है.....इसके लिए गुडगाँव पुलिस ने सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए पूरे गुडगाँव में वेरीफिकेशन की प्रक्रिया अपनाई...जिसके तहत सभी को अपने निकटतम पुलिस स्टेशन में अपना कोई भी पहचान पत्र जमा करवाना था। भई अच्छी बात है....इसी बहाने सभी का वेरीफिकेशन भी हो रहा है। बात यदि इतने पर खत्म हो जाती तो फिर वह बात ही क्या जो राष्ट्रमंडल खेल से जुडे और विवादित न हो। गुड़गाँव..जो विश्व पटल पर मिलेनियम सिटी..साइबर सिटी के नाम से जाना जाता है और यहाँ रह रहे प्रवासियों के लिए तो यह सपनो के शहर से कम नहीं।इस औद्योगिक नगरी में बहुत से प्रवासी मित्र काम की तलाश में आते है और अपने सपनों को पूरा करने की कोशिश करते है।ये सभी बिहार,उडीसा,उत्तरप्रदेश,पं.बंगाल से आए हैं। सभी का...

गुडगाँव की आवाज़ की सफर में...........

नवीं क्लास के बाद नरेश का दिल पढने में नहीं लगा,उसने आगे की पढाई नहीं की और घर में भी उसे किसी ने पढ़ने के लिए दबाव नहीं डाला ।दिन तो बीतते जा रहे थे।मगर नरेश के जीवन में कोई परिवर्तन नहीं आया,सिवाय स्कूल न जाने के। गुड़गाँव स्टेशन के पास सरायगाँव—यही है नरेश का गाँव ,सिर्फ अपने गाँव तक ही उसकी दुनिया थी।लगभग एक साल पहले तक नरेश की यही स्थिति थी।उसे बस उसके दोस्त जानते थे।और कुछ वे लोग जो इसलिए जानते थे...क्योंकि वह दिन भर गाँव में हाणता (घूमता) रहता था।मगर आज उसी नरेश को पूरा गाँव जानता है.....वह अब गुड़गाँव की आवाज सामुदायिक रेडियो में रिपोर्टर है। गाँव में जब लोग उसके उसके कार्यक्रम को सुनते हैं तो उसकी माँ के पास शब्द नहीं होते.....इस खुशी को बयां करने। नरेश की आंखें भी चमक उठती हैं...नरेश एडिटिंग में सबसे माहिर है।पूरे कार्यक्रम के तैयार होने के बाद प्रसारण से पहले जब नरेश को वह कार्यक्रम सुनाती हूँ....तो वह बारीकी से गलती निकाल लेता है। उसकी सबसे अच्छी खूबी यह है कि उसे पता होता है कि बीस मिनट की रिकॉर्डिंग में उसे क्या उड़ा देना है।उड़ा देने के बाद आपके प...

आज कौन सा डे है

मैं कुछ लिखकर उठी थी । दिमाग की सारी ऊर्जा लिखने में डाल दी थी.इसलिए उसने काम करना बंद कर दिया था।डेट और डे मुझे लिखना था,वो ध्यान में नहीं आ रहा था।मैंने जोर से सार्वजनिक तौर पर पूछा-आज कौन सा –डे है ?तभी बरामदे में कैरम में मशगूल मेरा ग्यारह वर्षीय भांजे ने तपाक से उत्तर दिया –रोज़ डे । मैंने आश्चर्य से पूछा- क्या??? ,उसने बडे भोलेपन से कहा –हाँ और लेख की पहली लाइन सुना दी। 7 फरवरी को रोज़ डे मनाया जाता है।मैंने उससे पूछा कि –तुम्हें कैसे मालूम,इससे पहले कि वह जवाब दे-उनके छोटे मियां ने और महत्वपूर्ण जानकारियाँ दे दी-मासी, 8 फरवरी को प्रोपोज डे और 9 फरवरी को चॉकलेट डे मनाया जाता है । मैं कुछ समझ पाती या कह पाती कि बडे मियां ने पूरे विश्वास के साथ अपने आई.क्यू के पुख्ता होने का सबूत दिया कि 10 फरवरी को टैडी डे और 12 फरवरी को किस डे है।मुझे तो ऐसा लग रहा था कि क्लास में मोस्ट टैलेंटेड बच्चों के सामने टीचर मेरी खाल उधेड रही हैं। उनका आत्मविश्वास और अचरज भरी मुस्कान देखकर यह अंदाजा सहज लगाया जा सकता था कि वे यही सोच रहे होंगे कि -हे भगवान! मासी को इतना भी नहीं पता ।अंत में दोनो...